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ओबीसी लिस्ट में इन 6 राज्यों की 80 जातियों को किया जाएगा शामिल, देखें

केंद्र सरकार का बड़ा कदम, एनसीबीसी की मंजूरी के बाद 80 जातियां ओबीसी लिस्ट में होंगी शामिल। क्या आपकी जाति भी है इस लिस्ट में? पढ़ें पूरी खबर और जानें इस फैसले का असर।

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ओबीसी लिस्ट में इन 6 राज्यों की 80 जातियों को किया जाएगा शामिल, देखें
ओबीसी लिस्ट में इन 6 राज्यों की 80 जातियों को किया जाएगा शामिल, देखें

राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) के प्रमुख हंसराज गंगाराम अहीर ने जानकारी दी है कि आने वाले महीनों में केंद्र सरकार छह राज्यों की 80 जातियों को अपनी ओबीसी (Other Backward Class) लिस्ट में शामिल कर सकती है। इस प्रक्रिया के लिए मंजूरी का काम शुरू हो गया है। यह फैसला केंद्र सरकार के पिछड़े वर्गों के उत्थान के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

हंसराज अहीर ने बताया कि केंद्र सरकार ओबीसी लिस्ट में लगातार बदलाव कर रही है और इस दौरान कुछ विशेष जातियों को जोड़ा गया है। यह पहल सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने और ओबीसी समुदायों को विकास की मुख्यधारा में लाने के लिए की गई है।

किन राज्यों की जातियां हो सकती हैं शामिल?

राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और महाराष्ट्र के लगभग 80 जातियों के नाम पर विचार शुरू कर दिया है। इनमें तेलंगाना सरकार ने अपनी 40 ओबीसी जातियों को केंद्र की सूची में जोड़ने की मांग की है। वहीं, आंध्र प्रदेश ने तुरुक कापू जाति और हिमाचल प्रदेश ने माझरा समुदाय को शामिल करने की गुजारिश की है।

महाराष्ट्र सरकार ने लोधी, लिंगायत, भोयर पवार और झंडसे जातियों को केंद्र की ओबीसी सूची में शामिल करने का प्रस्ताव दिया है। पंजाब ने यादव समुदाय और हरियाणा ने गोसांई समुदाय का नाम केंद्र की सूची में जोड़ने का अनुरोध किया है।

ओबीसी लिस्ट में बदलाव की प्रक्रिया

राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के प्रमुख ने बताया कि जातियों को ओबीसी लिस्ट में शामिल करने की प्रक्रिया काफी व्यवस्थित है। एनसीबीसी पहले एक बेंच बनाती है, जो सभी प्रस्तावों पर विचार करती है। इसके बाद आयोग अपनी सिफारिश केंद्र सरकार को भेजता है।

केंद्र सरकार सिफारिशों की समीक्षा करने के बाद इन्हें कैबिनेट की मंजूरी के लिए भेजती है। अंत में, राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद ही ओबीसी लिस्ट में जातियों को औपचारिक रूप से जोड़ा जाता है।

ओबीसी लिस्ट में बदलाव का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद से अब तक 16 समुदायों को केंद्र की ओबीसी सूची में जोड़ा गया है। इसके साथ ही, संविधान के 105वें संशोधन के तहत राज्यों को अपनी ओबीसी लिस्ट तैयार करने का अधिकार दिया गया है। इस संशोधन के माध्यम से 671 ऐसे समुदायों को सरकारी योजनाओं का लाभ मिलने लगा है, जो पहले इनसे वंचित थे।

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सामाजिक न्याय की दिशा में सरकार की बड़ी पहल

केंद्र सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया है कि सामाजिक समानता और पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए वह प्रतिबद्ध है। ओबीसी लिस्ट में जातियों को शामिल करना इसी दिशा में एक बड़ा कदम है। इससे इन समुदायों को शिक्षा, रोजगार और अन्य सरकारी योजनाओं का लाभ मिलेगा।

हंसराज अहीर ने कहा कि इस पहल का मकसद समाज के उन वर्गों को मुख्यधारा में लाना है, जो अब तक हाशिए पर रहे हैं। यह प्रक्रिया मंडल आयोग की सिफारिशों के आधार पर सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक मापदंडों को ध्यान में रखते हुए की जाती है।

एनसीबीसी और ओबीसी लिस्ट में बदलाव की भूमिका

ओबीसी लिस्ट में बदलाव करने के लिए एनसीबीसी की भूमिका महत्वपूर्ण है। अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) की लिस्ट में बदलाव के लिए रजिस्ट्रार जनरल की मंजूरी की जरूरत होती है, लेकिन ओबीसी लिस्ट में बदलाव के लिए यह शर्त लागू नहीं होती। यह प्रक्रिया एनसीबीसी के माध्यम से तेज और सरल हो जाती है।

ओबीसी लिस्ट में बदलाव का असर

केंद्र सरकार के इस कदम से छह राज्यों की 80 जातियों को सामाजिक और आर्थिक लाभ मिलेगा। इससे ओबीसी समुदायों की जिंदगी में सकारात्मक बदलाव आएंगे। साथ ही, ये जातियां शिक्षा और रोजगार में आरक्षण का लाभ उठाकर खुद को सशक्त बना सकेंगी।

सरकार के इस कदम से यह भी स्पष्ट होता है कि वह सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। इससे विकास की मुख्यधारा में पीछे रह गए समुदायों को आगे बढ़ने का मौका मिलेगा।

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