
अखाड़े भारतीय संत समाज के प्रमुख संगठन होते हैं, जिनकी अपनी आर्थिक व्यवस्था और प्रशासनिक ढांचा होता है। हर अखाड़े में कई पद होते हैं, जिनका काम अलग-अलग होता है। अखाड़ों में मुंशी, प्रधान, थानापति और कोठार जैसे पद प्रमुख माने जाते हैं। इसके अलावा, अखाड़ों का वित्तीय प्रबंधन करने के लिए चार्टर्ड अकाउंटेंट (CA) भी नियुक्त किए जाते हैं, जो पूरे आर्थिक लेन-देन का हिसाब रखते हैं और आयकर रिटर्न भी फाइल करते हैं।
अखाड़ों की वित्तीय व्यवस्था और खर्च
महाकुंभ में अखाड़ों की तरफ से हर दिन भंडारे की व्यवस्था की जाती है, जहां हजारों श्रद्धालु भोजन ग्रहण करते हैं। इसके अलावा, भक्तों को प्रसाद के रूप में दक्षिणा भी दी जाती है। इस व्यवस्था में अखाड़ों का भारी खर्च होता है। आंकड़ों के अनुसार, प्रत्येक अखाड़े में प्रतिदिन करीब 25 लाख रुपये खर्च होते हैं। इस धनराशि में अन्न क्षेत्र, दान-दक्षिणा और अन्य धार्मिक आयोजन शामिल होते हैं। पूरे महाकुंभ के दौरान, एक अखाड़े का अनुमानित खर्च 10 करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है।
अखाड़ों की आय के स्रोत
अखाड़े केवल खर्च ही नहीं करते, बल्कि उनकी अपनी आय भी होती है। अखाड़ों की आर्थिक व्यवस्था संतुलित रहती है क्योंकि उनके पास कई आय स्रोत मौजूद होते हैं। अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रवींद्र पुरी के अनुसार, अखाड़े महाकुंभ में दान लेने नहीं, बल्कि दान देने आते हैं। वे अपनी आय के स्रोतों से अर्जित धन को कुंभ मेले में खर्च करते हैं।
1. कृषि भूमि और संपत्ति से आय:
अखाड़ों के पास खेत, जमीन और अन्य संपत्तियां होती हैं, जिनसे उन्हें किराया और अन्य माध्यमों से नियमित आय प्राप्त होती है।
2. मठ और मंदिरों से आय:
अखाड़ों के पास कई मंदिर और मठ होते हैं, जहां से उन्हें चढ़ावा और अन्य धार्मिक गतिविधियों के माध्यम से धन प्राप्त होता है।
3. धार्मिक सेवाओं से आय:
कई अखाड़े अपने आश्रमों में धार्मिक शिक्षा और संस्कारों का आयोजन करते हैं, जिससे उन्हें श्रद्धालुओं का समर्थन और आर्थिक सहयोग मिलता है।
अखाड़ों की वित्तीय पारदर्शिता और इनकम टैक्स
अखाड़े अपनी आय और खर्च का पूरा लेखा-जोखा रखते हैं। हर अखाड़े के वित्तीय रिकॉर्ड की ऑडिटिंग (Audit) चार्टर्ड अकाउंटेंट द्वारा करवाई जाती है, और इनका इनकम टैक्स रिटर्न (Income Tax Return – ITR) भी दाखिल किया जाता है। यह दिखाता है कि अखाड़े अपने वित्तीय मामलों में पारदर्शिता बनाए रखते हैं।
महाकुंभ में दान और पुण्य
महाकुंभ न केवल श्रद्धालुओं के लिए बल्कि संत समाज के लिए भी एक बड़ा धार्मिक आयोजन होता है। अखाड़े अपने धार्मिक सिद्धांतों के तहत इस मेले में दान और सेवा के लिए आते हैं। प्रयागराज को पुण्य भूमि माना जाता है, इसलिए यहां गृहस्थों के साथ-साथ साधु-संत भी पुण्य अर्जित करने आते हैं।
छह साल की कमाई महाकुंभ में खर्च
महंत रवींद्र पुरी बताते हैं कि अखाड़े छह साल तक अपनी आय एकत्रित करते हैं और फिर कुंभ तथा महाकुंभ में आकर इसे दान कर देते हैं। इस परंपरा की तुलना इतिहास में प्रसिद्ध दानवीर राजा हर्षवर्धन से की जाती है, जो इसी तरह बड़े धार्मिक आयोजनों में दान किया करते थे।