
उत्तराखंड सरकार ने राज्य में समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code – UCC) को लागू कर दिया है, जिसके तहत विवाह, संपत्ति और पारिवारिक संबंधों से संबंधित कई महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं। इस नए कानून का उद्देश्य सभी नागरिकों के लिए एक समान कानूनी ढांचा प्रदान करना है, जिससे विभिन्न धार्मिक और सामाजिक समूहों के बीच समानता सुनिश्चित हो सके।
उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता का लागू होना राज्य के कानूनी ढांचे में एक महत्वपूर्ण बदलाव है। इससे समाज में सभी नागरिकों के लिए समानता और न्याय सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी। हालांकि, इस कानून के प्रभावों का आकलन समय के साथ ही हो सकेगा, लेकिन यह कदम समाज में प्रगतिशील बदलाव लाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास है।
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विवाह और तलाक के नियमों में बदलाव
UCC के तहत विवाह और तलाक के नियमों में एकरूपता लाई गई है। अब सभी धर्मों के लोगों के लिए विवाह पंजीकरण अनिवार्य होगा, जिससे विवाह संबंधी विवादों में कमी आने की उम्मीद है। तलाक के मामलों में भी समान नियम लागू होंगे, जिससे सभी नागरिकों के लिए न्याय की प्रक्रिया समान होगी।
संपत्ति के अधिकारों में सुधार
- नए कानून के अनुसार, गोद लिए गए बच्चों और अवैध (illegitimate) माने जाने वाले बच्चों को भी संपत्ति में समान अधिकार दिए गए हैं। पहले, ऐसे बच्चों को संपत्ति के अधिकारों से वंचित रखा जाता था, लेकिन अब उन्हें भी परिवार की संपत्ति में समान हिस्सा मिलेगा। यह कदम समाज में सभी बच्चों के प्रति समानता और न्याय सुनिश्चित करने की दिशा में महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
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लिव-इन रिलेशनशिप को मान्यता
- UCC के तहत लिव-इन रिलेशनशिप को भी कानूनी मान्यता दी गई है। अब ऐसे संबंधों में रहने वाले जोड़ों को कानूनी सुरक्षा और अधिकार प्राप्त होंगे, जो पहले स्पष्ट नहीं थे। इससे समाज में बदलते संबंधों के स्वरूप को स्वीकार्यता मिलेगी और ऐसे जोड़ों के अधिकारों की रक्षा होगी।
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बहुविवाह और बाल विवाह पर प्रतिबंध
नए कानून में बहुविवाह और बाल विवाह पर सख्त प्रतिबंध लगाए गए हैं। अब किसी भी व्यक्ति को एक से अधिक विवाह करने की अनुमति नहीं होगी, और बाल विवाह को पूरी तरह से अवैध घोषित किया गया है। इस कदम से महिलाओं और बच्चों के अधिकारों की रक्षा होगी और समाज में लैंगिक समानता को बढ़ावा मिलेगा।
उत्तराधिकार के नियमों में समानता
UCC के तहत उत्तराधिकार के नियमों में भी समानता लाई गई है। अब पुरुष और महिला उत्तराधिकारियों को संपत्ति में समान अधिकार प्राप्त होंगे, जिससे लैंगिक भेदभाव को समाप्त करने में मदद मिलेगी। यह कदम महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण की दिशा में महत्वपूर्ण माना जा रहा है।